गजल_सच है जरूर, केवल पर, श्मशान में
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कौन सा सच जिंदा रहा है इस जहान में?
कितने ही सारे सच दफन हैं हर मकान में।
उल्लू की आँख है ये सच देखता नहीं।
है दफन सारे ही सच झूठे शान-बान में।
सच पे टिके रह के जरा देखिये जनाब।
होंगे ही दफन आप अपने गिरेबान में।
हुस्न उनका सच नहीं है मान लीजिये।
जिंदा ही दफन देते कर गीता-कुरान में।
सच है जरूर आपके और मेरे पास भी।
सच है कि ये टंगा हुआ है आसमान में।
काश! कि सच होती माँएँ स्नेह साथ ले।
सच को बचाए रखती आँचल के छांव में।
सच को कुचलने लोग घरों से निकल रहे।
व करने दफन बेताब हैं कहीं श्मशान में।
सच की उमर अनन्त है शक है नहीं कोई।
शव सा पड़ा रहता है काजी के दुकान में।
कड़वा है सच, कहिए कि पी सकेंगे आप?
पर,आप उगल देना न उनके पीकदान में।
आइए लेंगे क्या सच कहने की हर कसम।
व होंगे नहीं दफन कभी इस दरम्यान में।
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अरुण कुमार प्रसाद