गजल
यूँ तो जिंदगी में बहुत से मुकाम आए
अपने हिस्से में बस इल्जाम आए
तमाम उम्र लोग हमसे काम लेते रहे
हमें ये लगा हम लोगों के काम आए
एक तुमने ही हमसे फासला रखा
गैरों के तो अक्सर ही पैगाम आए
खत लिख लिख कर जलाए हमने
सोचा क्यूँ लिफाफे पे तेरा नाम आए
ये जो जुस्तजू है, मरने नहीं देती
कहीं तू आए, तेरा बाम आए
कुछ फसाने अधूरे भी रह जाते हैं
क्या ज़रूरी हर सुबह की शाम आए