गजल
वो तेरी हर बात का जवाब रखते हैं
सुना कि पहलू में आफताब रखते हैं।
उन्हें जानना है तो उनके दिल में झाँक
असली चेहरे पर हरदम नकाब रखते हैं।
उनकी इस करतूत से हिल गये सभी
जुर्म की वो मोटी किताब रखते हैं।
यह तो मुमकिन न था पर हम जान गये
हर खत को इल्म से दाब रखते हैं।
क्या कर लेगा कानून और लगा पहरा
अपनी मुट्ठी में सत्ता जनाब रखते हैं।
अनिल कुमार मिश्र।