गजल
तेरा ख्याल अब भी जाता नहीं है
दिल को कोई और लुभाता नहीं है
ये कैसा मौसम हो गया है मुल्क का
अब आदमी को आदमी भाता नहीं है
खाली हाथ चल दिये बारिश की दुआ मांगने
किसी के भी पास छाता नहीं है
कभी यारों की महफिलें सजा करती थी
कोई अब वहां पर आता नहीं है
इसे लहू से खेलने की आदत पड़ गई
आदमी अब पानी से नहाता नहीं है
घर घर घूम कर देखा है हमने
किस घर में आज अहाता नहीं है ?
सब मंदिर मस्जिद के नाम लड़े जाते हैं
खुदा क्या दिल में समाता नहीं है
वो मासूम बच्ची हाथ फैलाती है अक्सर
उसका बाप कुछ भी कमाता नहीं है
उसको भला पुलिस वाले क्यों बख्शेंगे
वह किसी नेता का जमाता नहीं है