गजल
यूं तो घर घर एक परी रहती है
आज वो हालात से डरी रहती है
जो दिल लगाने की खता करते हैं
उनकी आंखे अश्कों से भरी रहती हैं
रोते रोते अक्सर सूख जाते हैं आंसू
मगर गम की डाली हरी रहती है
किसी को दो गज जमीन नहीं मिलती
किसी के कफन में जरी रहती है
हर हाल में ससुराल में खुश
पापा की परी रहती है