गजल
काश मेरा भी एक फ़साना हो दिल मेरा उसका आशियाना हो
दो जिस्म एक रूह हैं हम
आजमा ले जिसे आजमाना हो
मुस्कुरा दे गर देख वो मुझको लबों पे हँसी का आना-जाना हो
दिल में कशमकश बढ़ जाए हाल-ए-दिल जब जताना हो
इत्तला करूँ तो करूँ उसको कैसे बाद इसके छिपना-छिपाना हो
रूठ जाए गर तो मनाऊँ उसे
पास मेरे हँसाने का एक बहाना हो
हँसी खुशी काट लेंगें जिंदगी गर घर प्यार का खज़ाना हो।। अनिल कुमार “निश्छल”