गजल
जश्ने चरागां मुफलिस कैसे मनायेगा|
बाजार जल रहा है धुआं घर में आयेगा|
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जिसके दिलो दिमाग पे बछड़ों का झुन्ड है,
दीपक जलायेगा या वो फसलें बचायेगा|
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खा पायेंगे नहीं फिर बच्चे मिठाइयां,
बिकते ही आलुओं के वो कर्जा चुकायेगा|
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तूने भी चाइना तो न सोची है गाँव की,
कैसे बगैर बर्क वो लड़ियां जलायेगा|
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फुरसत न खेत से है वो बीमा के वास्ते,
दफ्तर के रोज रोज न चक्कर लगायेगा|
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मतलब जम्हूरियत का पता है ‘मनुज’ उसे,
राजा के पर खिलाफ वो हरगिज न जायेगा|