गजल
करें भी चोट का किससे यहाँ गिला कोई|
दियारे ग़ैर में अपना नहीं मिला कोई|
(दियारे ग़ैर–दूसरे देश, परदेश|)
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मियाने राह में बैठा बहुत जला कोई|
मगर तपिस में न पत्थर वहाँ गला कोई|
(मियाने राह- रास्ते के बीच)
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ख़याले ख़ाम की बातें सुना गया जालिम,
भरी थी बज्म न अपनी जगह हिला कोई|
(ख़याले ख़ाम-बेकार की)
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हरेक पा से जो इतना डरे मेरा साया,
कभी वजूद पे गुजरा है काफिला कोई|
(पा-कदम, पैर)
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कमी नसीब में मेरे नहीं तो क्या है ये,
जो कामयाब न कोशिश, न हौंसला कोई|
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खुदाशनासी ये पा दर हवा हुई शायद,
यूँ ही जमीन पे आता न जलजला कोई|
(पा दर हवा–निराधार, खुदाशनासी–सत्कर्म )
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कमा ले चार तू पैसे ‘मनुज’ अगर मिलना,
बहाले बद में न सिमटेगा फासला कोई|
(बहाले बद–बदहाली, तंगी, गरीबी)