गजल
दरदें दिल आपन सबके, बतावल न करीं।
दुःख में हमदर्द सबके, बनावल न करीं।
बनिके नादान दे दिहें, उ धोखा बहुत,
सबसे दिलवा जी रउरे, लगावल न करीं।
मेहनत से कमाई जी, नून रोटी,
घर रुपिया हराम के, लावल न करीं।
सब केहु इहाँ जिये के, हकदार बा,
धूप औरन के रउरे, चुरावल न करीं।
जब जलवही के बा, द्वेष ईर्ष्या जले,
बहू बेटी हउवे केहुक़े, जलवाल न करीं।
कर्म हउवे प्रधान, ई मानी हजूर,
अनायाश गाल आपन, बजावल न करीं।
एक्को रुपया साथे न केहू, ले गइल बा,
एहि से नाज रउरे तनिको, देखावल न करीं।