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14 Jun 2018 · 1 min read

गजल

इस मशीनी दौर में क्या हो रहा है आदमी।
खा नशे की गोलियों को सो रहा है आदमी।।

छा रही है हर तरफ, मतलबपरस्ती इस कदर।
स्वार्थमय रिश्तों को केवल ढो रहा है आदमी।।

जान दे देते थे कभी लोग ग़ैरों के लिए।
आजकल इंसानियत को खो रहा है आदमी।।

क्यों पड़ोसी सो रहा चादर को ताने चैन से।
बस इसी अफसोस में अब रो रहा है आदमी।।

दूरियां इतनी हुई हैं, दो दिलों के दरमियाँ।
प्यार से रहने की आदत खो रहा है आदमी।।

इस तरह बदलेगा करवट वक़्त सोचा था नहीं।
बीज नफ़रत के भला क्यों बो रहा है आदमी।।

है ‘विपिन’ की इल्तजा, इतनी सी सुनले या खुदा।
फिर वही लौटा दे जो सब खो रहा है आदमी।।
-विपिन शर्मा
रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर-9719046900

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