गजल
गजल
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२
मचि रहल बा दिल, जिगर में, खलबली हम का करीं।
साथ तहरी जुड़ गइल बा , जिंदगी हम का करीं।
याद ना कुछऊ रहेला यार बस तहरी सिवा,
हो गइल बारू तुहीं अब बंदगी हम का करीं।
ईश्क में बर्बाद आशिक, मैकदा के आस बा,
हद स ज्यादा बढि रहल बा, रिंदगी हम का करीं।
हर घड़ी बस यादि तहरो, राति दिन आवत हवे,
आँखि से सूखत कबो, नइखे नमी हम का करीं।
चैन सुख सगरो लुटा दिहनी तबो दूरी हवे,
ना समझ आवत हवे हमरो कमी हम का करी।
झूठ सबके भा रहल बा, साँच देला आँच हो,
मित्र से ही हो रहल बा दुश्मनी हम का करीं।
‘सूर्य’ चुप रहिहऽ अगर हालात बा विपरीत जो,
स्वार्थ के बा छा गइल जादूगरी हम का करीं।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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