“गजल”
“गजल”
चाह गर मन की न होती तो बताते क्यों
आह गर निकली न होती तो सुनाते क्यों
आप भी तकने लगे अनजान बीमारी
बे-वजह की यह जलन तपते तपाते क्यों।।
खुद अभी हम तक न पाए भाप का उठना
कब जला देगी हवा किससे छुपाते क्यों।।
शोर इतना तेज था विधने लगे हमको
गर दबा देते ललक हलक सहलाते क्यों।।
दरद अपनी कह सुनाने की वजह मिलती
बिन पते की मेहमानी घर बुलाते क्यों।।
सोच लो किसकी हुई हैं रुसवाईयाँ
पूछकर लगते न घा मरहम लगाते क्यों।।
‘गौतम’ बिना मर्ज की टिकती कहाँ दोस्ती
आकर न जाना अब कहीं दिन गिनाते क्यों।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी