गजल
वो मुझ पर सितम ढाती रही
रात भर मुझको जगाती रही
काश दूर होती ये मुफ़लिसी
वो रात भर याद आती रही
मुझे अपनी छत पर बैठे हुये
रात भर देखकर मुस्कुराती रही
मेरी परेशानियाँ और बढ़ती रही
मुझे मुड़ मुड़कर देखती रही
खुशियाँ नही है ज़िन्दगी में
वो मुझे हर रोज सताती रही
जो भी ऊँगली उठी चाहत पर
वो मुझे हर बात बताती रही
चोट देकर वो मुस्कुराने लगी
हर लम्हा मुझे याद आती रही
मुसलसल मुफ़लिसी थमी नही ऋषभ
फिर भी मुझे देखकर वो हँसती रही
रचनाकार ऋषभ तोमर