गजल
दर्द के आलम में भी मुस्कुराया जा सकता है
पत्थर पर कोमल फूल खिलाया जा सकता है
लोग मुझे पत्थर दिल कह कहकर दर्द देते रहे
उन्हें क्या पता पत्थर से झरना बहाया जा सकता है
उनकी हर गलती को छोटा समझ हम टालते रहे
हमें क्या पता चिंगारी से घर जलाया जा सकता है
गर हमारी दो आत्माओं का मिलन होता साथी
तो सपनो में मिलकर काम चलाया जा सकता है
मोहबत में बफ़ाये जफाये तो साथ साथ चलती है
लेकिन ऋषभ उनकी खताओं में जिया जा सकता है