गजल
जो जन्म से अंधा है वो देखना क्या जाने
जो दिल से बेबफा है वो बफा क्या जाने
जो छोड़कर चले जाते है बिन बताये सफर में
असल मे हमसफ़र क्या होता है वो क्या जाने
हर बात पर जो जहर उगलते है इंसान यहाँ
वो कालिया नागों से दुश्मनी करना क्या जाने
जिसे जिश्म रूह सासो जज्बातों में बसाया है
भला उस दिल से हम बगावत करना क्या जाने
हर रोज वोटों के भूखों ने लोगो को जलाया है
जनाब शियासत है ये,इंसानियत को क्या जाने
जिन्होंने मोहबत में भी दूरिया बरती थी हमसे
आज जफ़ाओं में हाल चाल पूछना क्या जाने
उसे तो मोहबत में भी मिलने का शौक़ नही था
आज नफरत है तो वो मुझसे मिलना क्या जाने
उस सुर्ख गुलाब की खातिर जिंदा है ऋषभ
तो गुलाब को डाली से तोड़ना वो क्या जाने