** गजल **
बहते थे अश्क जो तेरा प्यार पाने के लिए ।
रोक दिया उसे लबों को मुस्कुराने के लिए ।
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समन्दर तो अभी भी है तूफान समेटे हुए पर
हिदायत है आँखों का सैलाब न बनने के लिए ।
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ये होंठ हैं दगाबाज कभी भी हंसा देते हैं पर
सिमट जाता आंसू आँखों में छिपने के लिए ।
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जब कतरा कतरा दर्द रिसता है इस दिल से
फिर बेताब हो जाता है आंसू बहने के लिए ।
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ये वफादार आँखें बाहें फैलाये खड़े रहते हैं
अपनी आगोश में अश्क को समेटने के लिए ।
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आंसू में डूबकर भी देखा है हमने जमाने को
अपने भी साथ छोड़ देते हैं डूब जाने के लिए ।
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अश्क बहाने से कुछ नहीं मिलता है ” पूनम ”
इजाजत दो खुद को ही राह दिखाने के लिए ।
@पूनम झा
कोटा राजस्थान