** गजल **
लेखनी का सिर्फ सच आधार है।
सच नहीं तो लिखना निराधार है।
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लिखना तो माँ शारदे की कृपा है
गरिमा छोड़ दें तो सब बेकार है।
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जबान को गर कटार कहते हैं तो
लेखनी में भी तलवार की धार है।
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कोई गर जुबां से वार करता है तो
लेखनी का रूप होता तलवार है।
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जहाँ शस्त्र काम नहीं आता वहाँ
लेखनी कर सकती अपना वार है ।
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रचनाकार की भुजा है लेखनी और
निकले शब्द उसका व्यवहार है।
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आत्मा की आवाज बनती है लेखनी
“पूनम” रचना लेखक का संस्कार है।
@पूनम झा
कोटा राजस्थान