गजल ….
वक्त ………
दिया दर्द वो, पर प्यार बेहिसाब माँगता है।
दिया नहीं कभी कुछ, पर हिसाब माँगता है।
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भरोसे को भी उसपर भरोसा करने का भरोसा
नहीं पर वो है कि भरोसे का जवाब माँगता है ।
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बह गई जिंदगी यूं ही दरिया में सूखे पत्ते की
तरह पर वो जिंदगी का किताब माँगता है।
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लुढ़कती घिसटती जैसे तैसे कटती गई जिंदगी
वो तो खुशनुमा जिंदगी का खिताब माँगता है।
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काँटों से मुखातिब रहे देखा नहीं नरमियों को
पर वो है कि महकता हुआ गुलाब माँगता है।
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वक्त ठहरता नहीं कभी, यूं ही गुजरता जाता है
जीवन संघर्ष है “पूनम” बस आदाब मांगता है।
@पूनम झा। कोटा, राजस्थान
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