गजल
गर्दिश में अपने तारे थे तो क्या बुरे थे दिन??
यही सोच कर अपने अच्छे दिनों को कोसता है भारत,
पूरा बदन है छलनी और तार – तार आबरू
सम्राट से चले थे और मदारी पर आ गए हैं यही सोचता है भारत,
रोते बिलखते लोग और यतीम हुए बच्चे
सुलग रहे हैं घाटों पर तो कहीं नदियों में तैरता है भारत,
बेशर्म हुई सियासत गाड़ी बंगले में लगी है
कहीं दवा कहीं ऑक्सीजन कहीं चील कुत्तों से जूझता है भारत,
संदीप अलबेला