गजल सगीर
महफिले लूट गया शोर शराबे के बगैर।
कर गया सबको ही माइल वह तमाशे के बगैर।
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गैरत मंदी में बहुत लोग नही कहते हैं।
ज़रुरत मंदों को नही मिलता अब कासे के बग़ैर।
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उसकी यादों के बिना रह नहीं पाते हम तो।
कैसे रहते हैं यहां लोग अब रिश्ते के बगैर।
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शायरी सिर्फ नहीं रोज़गार है साहिब।
जिंदगी अब मेरी मुश्किल किसी धंधे के बगैर।
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“सगीर” हम देखते है सिर्फ उन्ही आंखों में।
आइना क्या करें हम देख उस चेहरे के बगैर।
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Dr SAGHEER AHMAD SIDDIQUI