गजल: न कोई गजल न कोई मिश्रा
तमाम शहर की अक्सर, रहे नजर में है…!
वो एक शख्स जो मेरे लहू, जिगर में है…!!
खयालो ख्वाब की मंजिल तलाश करता फिरे…!
हरेक शख्स यहाँ, उम्र भर सफर में है…!!
सनम ने पाई है जलवागरी जो, क्या बोलू…!
वो बात वो रौनक, कहाँ कमर में है…!
फरेब, झुठ, रियाकारियाँ करे है अब…!
न जाने आज का इंसा किस दहर में है…!!
तुम्हारे इश्क़ में बदनाम, हम हुये इतने…!
हमारा नाम यहाँ, रोज ही खबर में है…!!
उरूज पाए है फिर भी सुखन में ऐ साहिल…!
ग़ज़ल न जिनकी, न मिश्रा कोई बहर में है…!!