गजल (कोरोना)
गजल
बहुत है
नहीं आए फिर भी नचाती बहुत है ।
जो अपनी पै आए,तो आती बहुत है ।
बड़ा प्रेम है हाजमा की दवा से ,
हुई खुश तो हल्ला मचाती बहुत है ।
लगा मास्क रहती रखे खास दूरी,
कोरोना के कारण डराती बहुत है।
नहीं ठीक से गीत पूरा सुनाती,
मिला मंच ज्यों गुनगुनाती बहुत है ।
ऐसा नहीं है कि आती नहीं है,
आती तो है पर सताती बहुत है ।
सुनाएगी क्षणिका या दो तीन मुक्तक,
मगर भूमिका वो बनाती बहुत है ।
बड़ा प्यारा लगता नदी का किनारा,
उसे खेत की मेंड़ भाती बहुत है ।
मिले पूरा एकान्त नीरव जगह हो,
तभी प्यार खुलकर जताती बहुत है ।
हमें उसकी सूरत से क्या लेना देना,
जो सीरत से राहत दिलाती बहुत है ।
यदि याद उसकी करूँ बैठे बैठे,
तो सिगरेट बीड़ी पिलाती बहुत है ।
लगा लाक डाउन कहीं रुक गई है,
वो आने की हिम्मत जुटाती बहुत है ।
जुदा होते सबसे तो गम होता भारी ,
जुदा होके ये खुशियां लाती बहुत है ।
किरण भोर की हो याहो साँझ ढलना,
सुबह शाम मयफिल जमाती बहुत है।
पानी से जीवन रखो पास पानी,
वो पानी की महिमा बताती बहुत है।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश