गजल ए महक
हम इश्क के नशे में इस कदर महक रहे हैं,
दो पंछी एक डाल पर जैसे चहक रहे हैं।
तेरे आने की खबर से दिल का आलम महका ,
तेरे साथ की हर रात में सितारे भी झलक रहे हैं ।
ग़ज़ल की महफ़िल सजाई है हमने भी आज ,
शमा की रोशनी में जैसे जुगनू , दमक रहे हैं।
शहर-ए-इश्क में हर गली मशगूल बेबजह ,
कुछ उम्रदराज भी इसमें ठरक रहे हैं ।
जाम-ए-शबाब से आँखों में नशा उतर आया ,
तेरे दीदार की ख़्वाहिश में , बस बहक रहे हैं।
असीमित, बिन बरसे ही लौट गयी बदरिया ,
सूखे सावन में पपीहा भी दहक रहे हैं ।
स्वरचित-डॉ मुकेश ‘असीमित’