गजल(लूट का धंधा करें जो वे सभी रहबर हुए)
लूट का धंधा करें जो वे सभी रहबर हुए
जिंस कुछ जिनकी नहीं है आज सौदागर हुए।1
आशियाने जल रहे सब हो रहे बेघर यहाँ,
अब परिंदे क्या उड़ेंगे लग रहा बेपर हुए।2
मिल रही बहकी हवा कातिल बवंडर से अभी,
चरमराती डालियाँ बेकल विशाल शजर हुए।3
घुल रहा कैसा जहर गमगीन लगती है फिजा,
शब्द जैसे थे धरे हैं अर्थ देख अपर हुए।4
है वही अपना गगन भरता गया काला धुआँ,
पूछते पंछी विकल हालात क्यूँ बदतर हुए।5
पत्थरों को फाड़ कर भगवान आते थे कभी,
क्या करेंगे आजकल तो लोग ही पत्थर हुए।6
सो गये सोना उठाकर ले गये सब मसखरे,
कोयले की लूट में छापे सभी के घर हुए।7
@मनन