गंवाया है समय सब दिल्लगी में
ग़ज़ल
काफ़िया-ई
रदीफ़- में
1222 1222 122
गँवाया है समय सब दिल्लगी में।
किया कुछ भी नही इस ज़िंदगी में।
मुहब्बत इश्क़ की बातों में’ पड़कर
हमेशा जल रहा हूँ तिश्नगी में।
तुम्हारी बेरुख़ी हम सह न पाये
कटे यह ज़िंदगी अब बेबसी में।
अधूरे ख़्वाब जो सारे हमारे
हुए हैं, सिर्फ उसकी ही कमी में।
मुहब्बत में सभी को भूल बैठे
हुआ ये हाल मेरा बेखुदी में।
बड़ी बेदर्द होती है मुहब्बत
बहुत रोया हूँ’ मैं इस आशिकी में।
बिना उसके रहे ना एक पल भी
कटे अब हर घड़ी इक बेकली में।
अभिनव मिश्र अदम्य