गंवई गांव के गोठ
गंवई गांव के गोठ
अल्करहा जगा बसे हे,
मोर गवंई गांव ।
माटी हवे कन्हार जिहां
रुख बमरी के छांव।।
खोर गली एक जिहा
डोर कस लंबा।।
बीच तरिया म गड़े स्वयं
पुरखौंतीन खंभा
लाली पखरा लाल हे
देखब म करबरहा ।
चारो कोती चिखला माते
गांव हे अलकरहा ।।
2
सुन संगी मोर गांव के,
बबा पहर के गोठ।
अड़ही अड़हा रिहिस सब,
बबा रिहिस पोठ।।
बबा रिहिस पोठ,
पढ़हंता रिहिस भारी।
मान करय सब जात,
गांव के सब नर नारी।।
उघरा मुड़ बहु न राहय,
न करय आगु म कंगी।
विजय किहिस मोर गांव,
ऐसन रिहिस संगी।।
3
हीरा जगत के जोड़ी,
सुघ्घर दोनों मितान।
पढ़ें लिखे दोनों रिहिस
रिहिस गांव के सियान।।
रिहिस गांव के गोठ,
गोठियावय सुमंत गोठ।
निआव म कसा कसी ,
दिल म न राखय खोट।।
दुख सुख पुछ सबन के,
दुर करय सब पीरा।
गांव भर शोर उड़य,
खुशन राहय जगत हीरा।।
4
तीर तखार म परोसी,
बनके राहय परिवार।
राखय मेल जोल सबो,
एक जात गोतियार।।
एक जात गोतियार सबों
खांध म खांध मिलाय।
पीरा समझ अपन सब,
सबमें सब मिल जाय।।
विजय कहे बापत जाल में,
दुख अखिन बरसे नीर।
मगन होवय खुशी बेरा,
नाचय घर के तीर।।
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी वि खं आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़