गंगा-स्नान
गंगा-तट पर जाकर भी ना,
है पापों का भान l
कौन कराएगा प्यारे,
गंगा को स्नान l
गंगा तट पर जाकर भी…l
करके पावन जल को मैला,
डुबकी मारें ‘नंगे’l
इधर बहाएें कूड़ा-करकट,
उधर जपें ‘जय गंगे’ l
भरेगा विष भागीरथी में,
करेगा विष का पान l
कौन कराएगा प्यारे,
गंगा को स्नान l
गंगा तट पर जाकर भी…l
गंगा रो-रो कर अपने,
बच्चों से है यह कहती l
“कलि-काल में आकर मैं,
असुरों की कै़द में रहती” l
इसकी कल-कल से ही क़ायम,
है यह हिन्दोस्तान l
कौन कपाएगा प्यारे,
गंगा को स्नान l
गंगा-तट पर जाकर भी…l
दुनियां जब हँसकर कहती है-
“प्रखर” की हिल गई चूलें” l
मैं भी हँसकर कह देता हूँ –
नहीं कभी हम भूलें l
गंगा होगी निर्मल तो,
होगा नवयुग सन्धान l
कौन कराएगा प्यारे,
गंगा को स्नान l
गंगा-तट पर जाकर भी न…l
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
– राजीव ‘प्रखर’
मुरादाबाद (उ. प्र.)
मो. 8941912642