गंगा व्यथा
गंगा
भागीरथ के पुण्य कर्मों से मानव मैं तेरे पास हूं।
खत्म हुआ जाता अस्तित्व मेरा, इसलिए उदास हूं।
गंग अंजलि भर भी सुन अब जल नहीं मेरे पास है।
सूखे तल से जूझ रही मेरी लहरें बदहवास हैं।
कहीं बांध बांधों को तुमने बुरा हाल मेरा किया है।
सिर पटक कर मैं रोती,ऐसा जाल बिछा दिया है।
कभी नाले पनाले कभी कुप्रथाओं के हवाले सता रहे हैं
कहीं खाकर गुटका,तमाखु- पान थूकने वाले सता रहे।
प्लास्टिक की बोतलें पड़ी कहीं हैं थैलियां
मेरी निर्मलता हैं मिटा रहीं फैक्ट्री की नालियां।
राक्षस के आकार सा कूड़े का ढेर है,
ये सब तेरी बदौलत मानव,तेरा ही हेर फेर है।
नीलम शर्मा