“गंगा मैया”
परे समझ से है विधिवेत्ता,
विधि से बड़ा है, बैर क्यों!
हस रहा है नचिकेता,
हम सगे पर गैर क्यों?
हालातों का है ये मंज़र,
कि मिलते ही बंधन टूट गए,
प्यासी दरिया थी खामोश,
कि हाथों से साहिल छूट गए,
नहीं मिलते आज-कल किसी से,
दिल में कोई अविरल ठेस है,
एक चेहरे के पीछे देखो,
छुपे चेहरे अनेक हैं,
हमें हालात ही सिखलाते हैं,
जीवन जीने की शैली,
कितनी पवित्र हैं गंगा मैया,
हाय! दिखती हैं कितनी मैली?
राकेश चौरसिया