गंगा में बहकर आयी है लाश
देखा था जानवरों की मृत देह को सड़ते हुए
सफेद कीड़ों को शव निगलते हुए
चील-कौओं-कुत्तों को शव नोचते हुए
नदी-नालों में अनाथ असभ्य मरे जीवों को बहते हुए…
आज सड़ रहा है इंसान
बदबू फैल रही है सिंहासन तक
झूठ और भाषणों से जीत आगे बढ़ रही है
किसी का हाथ, किसी की आंख चील-कुत्तों का पेट भर रही..
पानी में बहकर आयी है लाश
आंखों का पानी सुखाकर आयी है लाश
कोई अपना था जिसके अपने बचे हैं
उनकी मजबूरी पर तरस खाकर आयी है लाश ….
अब जलाओ या दफ़नाओ
पशुओं की तरह इंसान भी सड़ते है, यही बताने आयी है लाश
मुर्दाखोरों का पेट भरकर
जीवन का नर्क भोगकर गंगा में तरने,
गंगा में बहकर आयी है लाश ..
इंसान कुछ, जबरन लाश बनकर सड़ रहे है
इंसान कुछ, नाक-मुँह सिकोड़ देख रहे है
इंसान कुछ, कफ़न दबाने फाइलों में गड्डा खोद रहे हैं
सभ्य समाज की सांकृतिक सभ्यता दिखाने आयी लाश..
सफेदपोश बैठे हैं सजकर मंच पर
फाइलों में दिखाने जीत के आंकड़े
ना कोई भाई, ना बहिन, ना माँ, ना बाप या पति
वस गिनती में नम्बर लगाने, गंगा में बहकर आयी है लाश..
कुत्ते के मुँह में माँस देखकर
शव को नोचते गिद्दों को देखकर
बिखडी पड़ी अंतड़िया देखकर
बताओ वो हिन्दू है या मुसलमान या जानवर
यही पूछने गंगा में बहकर आयी है लाश…….।।