गंगा माँ
शिव के जटा से निकलकर जब
गंगा आती है धरती के द्वार
न जानें कितने जीवन के लिए
खोल देती के खुशियों के द्वार।
कल – कल करती जब बहती है
इनकी मस्तानी सी धार
देख इन्हें मन प्रफुलित हो जाता
दिल में उठती खुशियों की बोछार।
छल छ्ल करती जब जाती है गंगा
गाँव ,वन, खेत ,नगर के द्वार
कितने हीं जीवो को देती
जीवन दान का वह आर्शीवाद।
पर्वत की बेटी यह गंगा
सबकी प्यास , बुझाती है
अपने निर्मल पानी से यह
माँ बन धरती का कष्ट हर ले जाती है।
इस धरा को पतित पावन बनाने के लिए
अनगनित लोगों का पाप धोती है गंगा
जिनके जल मे प्रवेश मात्र से
नई उर्जा संचरित हो जाती है
ऐसी है हमारी पतित पावनी माँ गंगा।
पवित्र गंगा की धार में
जीवन उज्जवलित हो जाता है
मन को एक अद्भुत सी शक्ति
एक अद्भुत सकुन मिल जाता है।
माँ का जितना भी वर्णन करूँ
शब्द कम पर जाते है
माँ गंगा तो माँ है इस धरती की
उनके नाम मात्र से ही
जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते है।
~ अनामिका