गंगा (बाल कविता)
गंगा
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आओ सपना देखें हम सब
सुंदर प्यारा- प्यारा,
गंगा फिर से बहे पुरातन
जैसे अमृतधारा।।
“गंगाजली” नदी से भर कर
हम घर पर ले आएं,
जिसके जल में कभी न कीड़े
बरसों पड़ने पाएं।।
जिसके तट की वायु
हमारे रोगों को हरती हो,
जिसके जल को
भस्म मृतक की भी छूकर तरती हो।।
उस गंगा में कूड़ा करकट
आओ कभी न डालें ,
प्रण लें, गंगा शुद्ध करेंगे
आगे और न टालें।।
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रचयिता :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर