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23 Nov 2021 · 1 min read

गंगा (बाल कविता)

गंगा
******************************
आओ सपना देखें हम सब
सुंदर प्यारा- प्यारा,
गंगा फिर से बहे पुरातन
जैसे अमृतधारा।।

“गंगाजली” नदी से भर कर
हम घर पर ले आएं,
जिसके जल में कभी न कीड़े
बरसों पड़ने पाएं।।

जिसके तट की वायु
हमारे रोगों को हरती हो,
जिसके जल को
भस्म मृतक की भी छूकर तरती हो।।

उस गंगा में कूड़ा करकट
आओ कभी न डालें ,
प्रण लें, गंगा शुद्ध करेंगे
आगे और न टालें।।
===========================
रचयिता :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर

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