गंगा नदी
************** गंगा नदी ***************
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हिमनद से निकली धारा ,भागीरथी है कहलाए
पर्वतों को वो चीर कर, मैदानों में फैल जाए
हिमालय में से निकलकर,बंगाल खाड़ी में सयाई
गंगोत्री उदगम स्थान से,जगह जगह फैल जाए
प्रयागराज तक पहुँच के,यमुना नदी में मिल जाए
फरूखाबाद,कन्नौज,कानपुर होकर प्रयाघ में आए
मोक्षदायिनी नगरी काशी मे,उत्तरवाहिनी कहलाए
सोन,गंडक,सरयू कोसी नदियाँ गंगा में मिल जाए
गिरिया नामक स्थान पे,गंगा शाखाओं में बंट जाए
भागीरथी और पद्मा का पावन रूप सदा कहलाए
भागलपुर राजमहल पहुंच कर दिशा बदल है जाए
पहाड़ियों के क्षेत्र में गंगा नदी दक्षिणवर्ती कहलाए
गंगा का पानी अमृत गंगाजल पवित्र नीर कहलाए
भूत प्रेत का साया जन जन के तन से दूर भगाए
धारा अपने साथ खनिज पदार्थ बहा कर ले आए
बंजर भूमि को सुंदरवन डेल्टाई से उपजाऊ बनाए
शिव जटा से पैदा भारतीय संस्कृति पहचान बनाए
मनुष्यों की अस्थियों का विसर्जन स्थान बन जाए
मनसीरत गंगा निर्मल धारा से धरा पवित्र हो जाए
पापियों के पाप धो धो कर स्वयं गंगा मैली हो जाए
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)