गंगा दशहरा
गंगा दशहरा पुण्य काल में
मांँ गंगा का अवतरण हुआ,
राजा सगर के प्रपौत्र
भगीरथ का तप सफल हुआ।
भागीरथी की अविरल धारा
गंगोत्री में प्रकट हुई,
हरिद्वार आकर माता फिर
धरती मांँ से लिपट चली।
उत्तर भारत की जीवनधारा,
सदियों से भाग्य विधाता है,
नौ-वहन, सिंचाई, जल-विद्युत,
तीर्थाटन की जन्मदाता है।
उद्योगों से दूषित होती,
जलजीवन खतरे में आया है,
सघन बस्तियों के अस्तित्व पर
संकट का बादल छाया है।
गंगा दशहरा के पुण्य काल में,
यह प्रण हमें लेना होगा,
‘नमामि गंगे’ के संकल्प को
पूर्ण योग से करना होगा।
मौलिक व स्वरचित
श्री रमण
बेगूसराय