Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 May 2024 · 2 min read

गंगा घाट

गंगा तेरा घाट

युगों- युगों से यात्रा मेरी,
तेरे साथ- साथ चलती रही।

जन्मों -जन्मों से गुजर कर ,
तुम पर ही तो आ के थमती रही।

जिंदगी के एक घाट से,
मौत के,
दूसरे घाट तक का सफर।

युगों- युगों से ना बदला है।
ना बदलेगा ।
जन्मों- जन्मों का यह सफर।

देखता हूँ……. तेरे घाट पर ,
जीवन का अनूठा ही फन।

मां की गोद में रुधन से भरा ।
नन्हीं किलकारी का स्वप्न ।

वो ममता ,
वो प्यार और स्नेह का अंबार।

जिंदगी के ,
स्वर्णित पलों का आभास ।

घुटनों के बल चलते,
सपनों की रंग -बिरंगी,
तितलियों को पकड़ने को,
मचलते मन की फुहार ।

कभी रुठ जाते, जिद्द करते,
फिर मान जाने के ढंग।

चिंताओं से मुक्त ,
हवा के झोंके से मुक्त ,
बहते जीवन के पल ।।

फिर समय की लहरों में ,
बचपन खो जाता है ।

पांव दबा के रेत के ,
घर बनाते भोले बचपन को,
जवानी की दहलीज पर ,
महल बनाने का स्वप्न सताता है।

फिर होड़ की ,
एक दौड़ शुरु होती है ।

इंसान सब पा जाना चाहता है।
हर रंग में खेलकर,
हर रस पी जाना चाहता है।

तब सब पा लेने की,
अमिट लालसा पाता है।

विषयों की लपटें,
दिन-रात दुगनी होती हैं।

इंसान ,
दूसरों को सीढ़ी बना।
अपने मतलब साधता है ।

विषयों का बोझ ढोते हुए।
पैसा कमाने की होड़ में ,
दिन-रात खोता है ।

अपना- पराया सब भूलता है।
धन की हवस में,
भोला बचपन तो….. क्या
बुढ़ापा भी आएगा यह भूलता है।

बस अपने लिए ,
अपनों के लिए जीता है ।
दूसरों को मारता- काटता है।

सच- झूठ के ,
कितने ही खेल खेलता है।

इस दौड़ में कब ,
जवानी बुढ़ापे में बदल गई ।
पता ही नहीं चलता है।

तब अपने किए कृत्यों का,
हिसाब नजर आता है।

वो अपनी जिन्हें अपना,
समझने का ,
भ्रम पाले बैठा था।
कोई अपना नहीं,
सारे अपने हैं।
यह एहसास जब आता है।

अपनी ही दुनिया बसा,
दुनिया बनाने वाले को
कब से भूले बैठा था ।

जब याद……… आता है ।
दूसरे ही पल सब छूट जाता है।

भीतर की ,
आत्मा जब जागती है।
बाहर की ,
आंख- कान- सांस
बंद हो जाते हैं।

जीवन के इस घाट पर,
रंगे सपने दूसरे घाट पर ,
खुद को ,
सफेद धुंध को ओढ़े हुए पाते हैं।

कितना भी ऊंचा उठ जाएं ,
खुद को धरा पर ही पाते हैं।

सब अपने -सब सपने ,
उस घाट पर रह जाते हैं।

फिर इस घाट से,
उस घाट का,
सफर कब खत्म हो गया ।

पिछले घाट पर,
छूटा सपनों का महल ।
अंतिम स्नान से ही धुल गया।

रिश्ते -नाते ,प्यार ,कड़वाहट,
यादें -बातें सब दिन ।
आग में हवन हो जाते हैं।

दूसरे घाट पर,
राख के ढेर के ,
बादल उड़कर।
गंगा तेरी ही,
गोद में शरण पाते हैं।

तेरे ही प्रवाह में ,
प्रवाहित हो जाते हैं ।

फिर उसी से ,
नवजीवन का प्रवाह पाते हैं।

युगों- युगों से तुम्हारे घाट ,
जन्मों-जन्मों के ,
जीवन मरण की ,
अमृत कथा सुनाते हैं।

Language: Hindi
1 Like · 101 Views

You may also like these posts

सत्य की खोज
सत्य की खोज
Shyam Sundar Subramanian
अनुपम उपहार ।
अनुपम उपहार ।
अनुराग दीक्षित
🙅आज का दोहा🙅
🙅आज का दोहा🙅
*प्रणय*
*हमारी बेटियां*
*हमारी बेटियां*
ABHA PANDEY
2727.*पूर्णिका*
2727.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
होठों की हँसी देख ली,
होठों की हँसी देख ली,
TAMANNA BILASPURI
नववर्ष में
नववर्ष में
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
जो रास्ते हमें चलना सीखाते हैं.....
जो रास्ते हमें चलना सीखाते हैं.....
डॉ. दीपक बवेजा
मैं मजदूर हूँ
मैं मजदूर हूँ
Arun Prasad
बेईमानी का फल
बेईमानी का फल
Mangilal 713
भूमि दिवस
भूमि दिवस
SATPAL CHAUHAN
#खरी बात
#खरी बात
DrLakshman Jha Parimal
*यों खुली हुई ऑंखों से तो, जग ही दिखलाई देता है (राधेश्यामी
*यों खुली हुई ऑंखों से तो, जग ही दिखलाई देता है (राधेश्यामी
Ravi Prakash
यूं उन लोगों ने न जाने क्या क्या कहानी बनाई,
यूं उन लोगों ने न जाने क्या क्या कहानी बनाई,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
स्वाभाविक
स्वाभाविक
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
वैदिक विवाह
वैदिक विवाह
Dr. Vaishali Verma
विशाल अजगर बनकर
विशाल अजगर बनकर
Shravan singh
संस्कृति
संस्कृति
Abhijeet
राम दिवाली
राम दिवाली
Ruchi Sharma
इज्जत कितनी देनी है जब ये लिबास तय करता है
इज्जत कितनी देनी है जब ये लिबास तय करता है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मन की इच्छा
मन की इच्छा
अवध किशोर 'अवधू'
*घर*
*घर*
Dushyant Kumar
मत फैला तू हाथ अब उसके सामने
मत फैला तू हाथ अब उसके सामने
gurudeenverma198
"फागुन में"
Dr. Kishan tandon kranti
सात समंदर पार
सात समंदर पार
Kanchan Advaita
हमेशा सब कुछ एक जैसा नहीं रहता ,
हमेशा सब कुछ एक जैसा नहीं रहता ,
पूर्वार्थ
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
करार दे
करार दे
SHAMA PARVEEN
कुछ अनकही
कुछ अनकही
Namita Gupta
पैगाम डॉ अंबेडकर का
पैगाम डॉ अंबेडकर का
Buddha Prakash
Loading...