गंगा की गुहार
गंगा की गुहार
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हे भागीरथ,
क्यों ले आये मुझे
देवलोक से धरा पर
कर दिया मैला
मेरा स्वच्छ आँचल
आज तरसती हूँ
बहते नीर को
आज संकट में हूँ मैं
मृत्यु निकट है मेरी
ये स्वार्थी मनुष्य
नष्ट कर रहे हैं मुझे
कितनी ही लाशें ढो चुकी मैं
बहुत मैला ढो लिया मैंने
श्वेत जल धारा को
काली गंगा बना दिया
हे भागीरथ
तुम तो लाये थे
अपनों को तारने हेतु
मैंने असंख्यों को तार दिया
अब तो मुझे भी तार दो
इससे पहले कि मैं मिट जाऊं
छोड़ आओ मुझे देवलोक
पुनः आ सकूँ धरा पर
किसी के बुलाने पर
सबको तारने
बचा रहे मेरा अस्तित्व
मेरी पवित्रता
मेरा कल कल बहता जल |
“सन्दीप कुमार”