खफ़ा हूँ मैं
“खफ़ा हूँ मैं”
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खफा हूँ मैं,
हाँ तुझसे बहुत खफा हूँ मैं,
मुझसे क्या नाराज़गी है तेरी,
तू बताता क्यों नहीं,
मेरे साथ जो होता है,
गर मेरी सज़ा है,
वजह बताता क्यों नहीं,
क्या अभी तक तेरा मन नहीं भरा,
अभी कल ही आइना देखा
सन्न रह गया,
मेरी दाढ़ी में से झांक रहे थे
कुछ सफ़ेद बाल
ये क्या हो गया,
क्या मैं बूढ़ा हो रहा हूँ,
३२ की वय सफेदी का आना,
ये कहाँ का न्याय है,
आज आइना देखता हूँ,
सर पर, चेहरे पर
सफेदी ही नजर आती है,
जिया भी नहीं हूँ मैं
अभी तो ढंग से
और तूने मुझे क्या बना दिया है,
मुझसे उम्रदराज लोग भी,
मुझसे छोटे नजर आते हैं,
और तू मुझसे क्या उम्मीद रखता है,
क्या दूँ मैं तुझे,
कहाँ से लाऊँ श्रद्धा मैं तेरे लिए,
मैं बहुत खफा हूँ तुझसे,
बहुत बहुत खफा हूँ।
“संदीप कुमार”
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