खफ़ा ही रहा
**** खफ़ा ही रहा (गजल) ****
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दर हमारा सनम यूं खुला ही रहा।
नींद में भी तुझे मैं बुला ही रहा।
मोड़ पर तुम अकेले कहीं छोड़ दो,
छोड़ने का हमें भय सता ही रहा।
नाम ले कर सदा था बुलाया तुम्हें,
वायदा तोड़ने का गिला ही रहा।
कोशिशें काम सारी नहीं आ सकी,
आज भी गम मुझे वो रुला ही रहा।
ज़ोर सीरत हमेशा चला ही नहीं,
यार प्यारा हमारा ख़फ़ा ही रहा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)