खड़ूस पत्नी
चूड़ी कंगन टिकिया बिंदिया नई नई चीजे लेत है।
जेब में रुपया पा जाये तो व खाली कर देत है।
मांगो वा से रोटी तो बा सब्जी भर के देत है।
बिल्ली जैसी बा गुर्राबे अनुआ सारे लेत है।
कबहु बनावे कच्ची रोटी,बासे चावल देत है।
पुरा मुहल्ला में जा जा के नई बहुओ को नेत है।
घूमन खो वा चली गई तो खाती भर भर पेट है।
सोत में भैया रेल के जैसे व खर्राटें लेत है।
एक बात गर कुई ने कह दे व् तो सौ सौ केत है
चूड़ी कंगन टिकिया बिंदिया नई नई चीजे लेत है।
कृष्णकान्त गुर्जर