‘ख़्वाबों का शहर’
‘ख्वाबों का शहर’
हाँ ये ख्वाबों का शहर है!
यहाँ सिर्फ़ ख़्वाब मिलेंगे।
कुछ रूठे
कुछ टूटे
कुछ झूठे
तो कुछ सच्चे मिलेंगे।
हाँ ये ख्वाबों का शहर है!
यहाँ सिर्फ़ ख़्वाब मिलेंगे।
कुछ फीके
कुछ तीते
कुछ खट्टे
तो कुछ मीठे मिलेंगे।
हाँ ये ख्वाबों का शहर है!
यहाँ सिर्फ़ ख़्वाब मिलेंगे।
कुछ उलझे
कुछ सुलझे
कुछ दूर
तो कुछ पास मिलेंगे।
हाँ ये ख्व़ाबों का शहर है!
यहाँ सिर्फ़ ख़्वाब मिलेंगे।
कुछ ऊँचे
कुछ नीचे
कुछ टेढ़े
तो कुछ इकसार मिलेंगे।
हाँ ये ख्व़ाबों का शहर है!
यहाँ सिर्फ़ ख़्वाब मिलेंगे।
कुछ सूखे
कुछ गीले
कुछ नम
तो कुछ सदाबहार मिलेंगे।
हाँ ये ख्व़ाबों का शहर है!
यहाँ सिर्फ़ ख़्वाब मिलेंगे।
कुछ सिमटे
कुछ लिपटे
कुछ बिखरे
तो कुछ तैयार मिलेंगे।
हाँ ये ख्व़ाबों का शहर है!
यहाँ सिर्फ़ ख़्वाब मिलेंगे।
©®
स्वरचित मौलिक