” ख्वाहिश “
मैं….
अपने कर्मों का फल चखना चाहती हूँ
लेकिन थोड़ा सा धैर्य रखना चाहती हूँ ,
मैं….
हर परिस्थिति में डटी रहना चाहती हूँ
हालात को घुटने टेकते देखना चाहती हूँ ,
मैं….
उम्र को हर मोड़ पर झुठलाना चाहती हूँ
अपनी हिम्मत से इसे बेबस बनाना चाहती हूँ ,
मैं….
भाग्य को कर्म से जोड़ना चाहती हूँ
सारी मिथ्याओं को तोड़ना चाहती हूँ ,
मैं….
चुनौतियों को चुनौती देना चाहती हूँ
इनकी आँखों से आँखें मिलाना चाहती हूँ ,
मैं….
लड़खड़ाते हुये भी संभलना चाहती हूँ
सामने वाले की हँसी रोकना चाहती हूँ ,
मैं….
अपनी मेहनत का मुकाम पाना चाहती हूँ
विरोधियों की सोच को झुकाना चाहती हूँ ,
मैं….
बस इंसान हूँ इंसान ही बने रहना चाहती हूँ
भगवान या शैतान नही बनना चाहती हूँ ,
मैं….
अपने आसपास प्रिय जनों को रखना चाहती हूँ
उनके साथ खुद भी प्रिय बन रहना चाहती हूँ ,
मैं….
धन – दौलत की खाई को भरना चाहती हूँ
इसके हनक की महत्ता को मिटाना चाहती हूँ ,
मैं….
दिल को एक सुंदर घर बनाना चाहती हूँ
दूर हो कर भी दिल में रखना/रहना चाहती हूँ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 05/07/2021 )