ख्वाब
आया था अपनो से मेल मिलाप बढाने को,
अरसों बाद भी पाया दिवारों के ठेकेदारों को।
यह मंजर देख मन फिर से तड़प गया,
संयुक्त परिवार का ख़्वाब स्वप्न में ही रह गया।।
परिवार में दिखावे की होड़ चल रही है,
बस रिश्तों को रिझाने में।
हम भी बैठे उस ही महफ़िल में,
सच्चे प्रेम की आस लगाए।।
प्रेम के दिखावे से मन यूं सहम जाता है,
जैसे किसी अपने के हाथ से तमाचा खाता है।
फिर मन अपनो से अपना ही दूर हो जाता है,
देखने वालो को बदला स्वरूप नजर आता है।
😔😔😔😔
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.-बनेडा (राजपुर)