ख्वाब
खुलते बंद होते पलकें
जैसे ख्वाबों को
कैद कर लेना चाहते हों
खुले जो आँखें
खुद को दूर पाते
ख्वाबों की तरह
जो कुछ फासले पर
होकर भी
पहुँच से दूर
बहुत दूर होते हैं
और हम खुद को
तसल्ली देते
बस एक रात और
फिर सारे ख्वाब
हमारे
सिर्फ और सिर्फ
आसरे के सहारे •••••••••••••