ख़्वाब सिर्फ ख़्वाब ही रहे…
मोहब्बत को कोई फरेब या ख़ुलुस-ए-पाक कहें
है बात तो तब, जब मोहब्बत सिर्फ मोहब्बत ही रहे…
फैलाकर झोली माँग लें, दौलत और शोहरत
मगर कभी तो ‘खुदा’ की, बंदगी सिर्फ बंदगी ही रहे…
खुदा ना समझ ख़ुद को, इंसानियत की हद से बढ़कर
है भला इसी में सबका, इंसा सिर्फ़ इंसान ही रहे…
ख़्वाबों को देखकर, ना आरज़ू रख हकीकत की
‘अर्पिता’ कलम कहे, ख़्वाब सिर्फ ख़्वाब ही रहे…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’