ख्वाब में देखा जब से
ख्वाब में देखा जब तुम्हें, धड़कनें बढ़ गई
बेखुदी इतनी छायी ,तेरी खुमारी चढ़ गई।
दुनिया बदली बदली सी ,फिर हमें लगने लगी
जब से एक दिलरुबा,आंख तुझसे लड़ गई।
नींद आये या न आये , ख्वाब रोज़ आने लगी।
थोड़ी सी आहट पर लगे,जैसे नींद उखड़ गई।
देख कर जब हमें , नज़रे फेर ली तुमने
कैसे कहें ,ऐसा लगा , दुनिया थी उजड़ गई।
ख्वाब से जागे तो,तुम न थे कहीं सामने
मगर दिल का क्या करें ,सांसें थी अड़ गई।
सुरिंदर कौर