ख्वाबों को पलने दो
published in buisness sandesh august edition
ख्बाबों को पलने दो……
वंदना गोयल
क्या बुरा किया था निगाहों ने
जो देख लिया था उनको ख्बाबों में….
बस इतना गुनाह हो गया उनसे कि
गिरने न दिया उनको अश्को की तरह।
वो ख्बाब भी क्या था बस……
इक तडप थी उनको छू लेने की.
इक चाह थी कि……….
आसमां की छत हो सर पर
इक चाह थी कि………
पाॅव के नीचे जमीं आ जायें।
इक चाह थी कि…………..
आॅख में आॅसू ख़ुशी के हो
इक चाह थी कि………….
होठों पे मुठठी भर हसीं आ जायें।
इक चाह थी कि………
बाहों में आसमां हो थोडा सा
इक चाह थी कि…….
निगाहों से पता मंझिल का पा जाये।
इक चाह थी कि………..
खुद को पहचानने लगे
इक चाह थी कि……..
खुद को थोडा सा जान जाये।
इक चाह थी कि……..
पाॅव में अपने भी हो पायल बंधी
इक चाह थी कि……
इन कदमो ंसे जमाना लाँघ जाये।
इक चाह थी कि…….
दर्द को गिरा दूॅ अश्को की तरह
इक चाह थी कि……..
प्यार उसका सीने में छिपा लाये।
इक चाह थी कि…
उसके हो जाये बस
इक चाह थी कि………
उसको अपना बना लायें।
कया बुरा किया निगाहों ने
गर देख लिया इक ख्बाब.
ख्बाब …
कि……ख्बाबो को पलने दो निगाहो ंमें
ख्बाब जीने को सबब बनते है।
हाथो ंसे छूटने न दो इनको कि
ये जख्मों को सीने का सबब बनते है।
क्या बूरा किया निगाहो ंने…..
गर देख लिया इक ख्बाब।