ख्वाईश
मेरी जिंदगी में अभी कुछ किरदार बाकी है,
इस दर्द-ए-दिल पे तेरा इख़्तियार बाकी है।।
मोहलत भी ना मिली हमें अबतक पल-दो-पल,
अभी तो आँखों को*उनका*दीदार बाकी है।।
इक उम्र गुजार दी हमने उनकी ख्वाइशों में,
करीब से उन्हें देखने का इंतजार बाक़ी है।।
वो कहते रहे हमेशा एक दिन ऐसा आयेगा,
उस दिन की बेकरारी में अभी करार बाक़ी है।
मुद्दतों से शौक था बारिश में यूँ भीगने का,
वो सावन की पहली रिमझिम फुहार बाकी है।।
आये जो ख्वाब आईने में देखना खुद को कभी,
तेरा उन ख्वाबों में मेरे अभी इज़हार बाकी है।।
वक्त कितना खूबसूरत जो आया हिस्से में मगर,
मिलने की ख्वाईश तो अभी बेशुमार बाकी है।।
उनसे रुबरु हो गुफ्तगू का पल मिले ऐसे कभी,
जैसे जमीं पर जन्नत की अभी दरकार बाकी है।
थक सी गई है जिंदगी यूँ ख्वाइशों के बोझ से,
इक रोज़ अब तो इनका उतऱना भार बाक़ी है ।
मोहब्बत हमें हुई है इस कागज़ और कलम से,
कि “ऋतु*गज़लों पर अभी अधिकार बाकी है।।