खौफ़
कल रात जब में वापस घर को लौट रहा था। तब मुझे लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। मुड़ कर देखा तो एक साया नजर आया।
मैंने पूछा तू कौन है ? उसने कहा मैं खौफ़ हूं । दहश़तग़र्दी फैलाना मेरा काम है।
मैं वो आग हूं जो फ़िरकापऱस्ती के तंदूर में जलती हूं ।
जिसमें सिय़ासत की रोटी पकाई जाती है।
मैं वो जरासिम़ हूं जो लोगों के खून में फैल कर उनके मऱासिम खत्म कर देती हूं।
दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बनाना मेरा श़गल है ।
लोगों के खून में फैल कर उन्हें जुऩ़ूनी बनाना मेरा श़ौक है ।
मेरा अकेला व़जूद नहीं है।
मैं चंद सरफ़िरे नौजवानों की भीड़ की श़क्ल लिए उभरती हूं।
और आग़़जनी, लूट, कत्ल ओ ग़ारद अंजाम देती हूं ।
ग़द्दारी मेरी जान है ।
नफ़रत के बीज बोना मेरी शान है ।
मै म़जलूमों और मास़ूमों पर क़हर ब़रप़ाती हूं।
पर हिम्म़तवाले जाँबाज़ों का मुकाबला करने से मैं डरती हू्ं ।
क्योंकि जिस दिन ये मेरे खिलाफ़ खड़े हो जाएंगे उस दिन मेरी हस्ती जड़ से मिटा कर ही दम़ लेंगे ।