खौफ़ का हर दिल में डेरा हो गया है
खौफ़ का हर दिल में डेरा हो गया है
आदमी कितना अकेला हो गया है
घुट गई है साँस आकर तन के अन्दर
दर्द का दिल में बसेरा हो गया है
स्वार्थ में खोता रहा इंसानियत जो
आदमी वो बेसहारा हो गया है
यदि सुबह के भूले हो घर लौट आओ
अब जरूरी ये समझना हो गया है
देखकर हालात अब इस ज़िन्दगी के
मर चुका ईमान जिंदा हो गया है
रात लम्बी है सवेरा फिर भी होगा
सोचकर दिल में उजाला हो गया है
‘अर्चना’ ये किस तरह तुम को बताए
ज़िन्दगी पर गम का साया हो गया है
01.05.2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद