खो गया है आदमी
खो गया है आदमी
रोजमर्रा की जिंदगी में खो गया है आदमी।
सब कायदे भूल गहरा सो गया है आदमी।।
कुदरती सौगातों को ये बर्बाद कर रहा,
पैसे कमाने की मशीन हो गया है आदमी।।
ये इंसानियत को नेस्तनाबूद करने वाला,
अपनी बर्बादी के बीज बो गया है आदमी।।
चूस के खून गरीबों का ये अमीर हो गया,
गरीबी में खून के आंसू रो गया है आदमी।।
जिसके नापाक इरादे बुलंद रहे हैं सदा,
कुर्सी नसीं हो के दामन धो गया है आदमी।।
सिल्ला’ कांटों भरा हुआ है राह ईमान का,
ईमान बेच हसीं सपने संजो गया है आदमी।।
-विनोद सिल्ला